• हाईटेक सिटी में वृद्घाश्रम जरूरत या मजबूरी!

    नोएडा ! बढ़ती उम्र के साथ-साथ जैविक क्रियाओं की गति धीमी होने लगती है जिसके कारण व्यक्ति की शक्ति और संवेदनशीलता कम होती जाती है और वो अपने काम करने में असमर्थ हो जाता है तब उसे जरूरत होती है किसी अपने के सहारे की। पर यही अपनीे उन्हें एक मुसीबत समझकर खुद से दूर कर देते हैं इसके लिए ये अपने सहारा लेते हैं...

    नोएडा !   बढ़ती उम्र के साथ-साथ जैविक क्रियाओं की गति धीमी होने लगती है जिसके कारण व्यक्ति की शक्ति और संवेदनशीलता कम होती जाती है और वो अपने काम करने में असमर्थ हो जाता है तब उसे जरूरत होती है किसी अपने के सहारे की। पर यही अपनीे उन्हें एक मुसीबत समझकर खुद से दूर कर देते हैं इसके लिए ये  अपने सहारा लेते हैं वृद्धाश्रम का। वृद्धाश्रमों की संस्कृति ने बड़े शहरों को ही नहीं, बल्कि  मझोले एवं छोटे शहरों को भी चपेट में लेना शुरू कर दिया है। इसका प्रचलन दिनों-दिन बढ़ता जा रहा है, लेकिन दूसरी तरफ  बुजुर्गों के सम्मान की संस्कृति सिकुडऩे लगी है। वृद्घा आश्रम आज जरूरत है या फिर मजबूरी इस बारे में हमने समाज के कई लोगों से जाना। 65 वर्षीय चन्द्र प्रभा सूद लेखिका के साथ-साथ समाजसेवी हैं। वे बताती हैं कि वृद्घाश्रम की आवश्यकता भारतीय संस्कृति के अनुसार है ही नहीं। हमारे पारिवारिक ढांचे की ऐसी परिकल्पना की गई है कि उसमें इन आश्रमों की जरूरत को महसूस ही नहीं की जाती। हमारे ऋ षि-मुनियों और ग्रन्थों ने हमें घुट्टी में पिलाया है कि माता-पिता भगवान का रूप होते हैं। वे इस संसार में लाने का जो उपकार हम पर करते हैं, उस ऋण को जीवन भर उनकी सेवा करके भी नहीं चुकाया जा सकता। मन्दिरों में न जाकर यदि बच्चे माता-पिता की सेवा-सुरक्षा व उनकी सभी आवश्यकताओं को पूरा करते हैं तो उन्हें ईश्वर की पूजा जैसा ही फ ल मिलता है। वृद्घाश्रम वो स्थान होते हैं जहां वृद्धावस्था में वे लोग रहते हैं जो किसी भी कारण से असहाय होते हैं या फिर उनकी देखभाल करने वाला कोई नहीं होता। इन आश्रम में उनका ध्यान रखा जाता है। बीमार पडऩे पर इलाज कराया जाता है। अपने जैसे साथियों के साथ रहकर लोग अन्तिम समय में जीवन के दिन गिनकर व्यतीत करते हैं। वहीं पर वे खाते-पीते हैं, मनोरंजन करते हैं और अपनी यादों के सहारे रोते-बिलखते हुए अपने बचे हुए दिन पूरे करते हैं। यह स्थिति किसी भी सभ्य समाज के लिए सही नहीं है। युवा निर्मला परगाई बताती हैं कि शहर में कुल कितने वृद्धाश्रम हैं, इसका सरकारी या गैर सरकारी स्तर पर कोई जानकारी नहीं है। इसलिए कोई निश्चित आंकड़ा किसी के पास नहीं है। वृद्धाश्रम की बढ़ती संख्या को देखकर हमें ये सोचना चाहिए कि कितने बूढ़ों को घर से बेघर होना पड़ रहा है। नोएडा और उसके आसपास के क्षेत्रों में दो दर्जन से ज्यादा वृद्घाश्रम चल रहे हैं। लेकिन इनसे ज्यादा संख्या वैसी संस्थाओं की है जो वृद्धाश्रम के रूप में कहीं नामजद नहीं हैं, लेकिन उनका काम लगभग यही  है।


अपनी राय दें