नई दिल्ली ! दवाओं की लगातार बढ़ रही कीमतों को लेकर सर्वोच्च न्यायालय ने सरकार को सलाह दी है, कि कीमतों में और वृध्दि नहींहोना चाहिए।
अदालत में केन्द्र सरकार एक बार फिर से स्वास्थ्य नीति पेश नहीं कर सकी और उसने तीन माह का समय मांग लिया। उल्लेखनीय है, कि पहले दवाओं का नियंत्रण रसायन मंत्रालय करता था, पर बाद में सरकार ने इसके लिए दवा मंत्रालय बना दिया है। विभाग ने कुछ समय पहले औषधि मूल्य निर्धारण नीति जारी की है। वहींगैर-सरकारी संगठनों के समूह 'ऑल इंडिया ड्रग एक्शन नेटवक' ने इस नीति को अदालत में चुनौती दी है। संगठन की डॉ. मीरा शिवा ने देशबन्धु को बताया, कि संगठन की मांग है, कि स्वास्थ्य सेवाओं की उपलब्धता सभी के लिए होना चाहिए। भारत जैसे देश में जहां गरीब बड़ी संख्या में हैं, अधिकांश लोगों को दवा अपनी जेब से खरीदनी पड़ती है, क्योंकि सरकार के पास सभी को स्वास्थ्य सेवाएं उपलब्ध कराने की नीति नहींहै। औषधि मूल्य निर्धारण नीति में सरकार मूल्य नियंत्रण की बात को कर रही है, पर साथ ही उसे बाजार के भरोसे छोड़ने की तैयारी भी कर रही है। संगठन का कहना है, जीवन रक्षक दवाओं के अलावा अन्य दवाओं की कीमतों में भी नियंत्रण जरुरी है, क्योंकि यहां गरीबों में कई ऐसी बीमारियां नजर आ रही हैं, जिसके लिए किसी मरीज को लंबे समय तक दवाओं का उपयोग करता है। संगठन का यह भी कहना है, कि दवा की कीमत क्या हो? यह तय करने का काम कंपनी करती है और मरीज क्या खाए? यह चिकित्सक तय करता है। उपभोक्ता के सामने कोई विकल्प नहीं है। संगठन की याचिका पर सुनवाई करते हुए न्यायमूर्ति जी एस सिंघवी और न्यायमूर्ति एस जे मुखोपाध्याय की खंडपीठ ने कहा कि दवाओं के मूल्य और सामान्य स्वास्थ्य जांच की दरें पहले से ही बहुत अधिक है और इसे अब और अधिक बढाया नहीं जाना चाहिए।