• अपोलो ने 20 फीसदी बढ़ाई राशि

    बिलासपुर ! अपोलो ने रेलवे कर्मचारियों के इलाज में 20 फीसद तक शुल्क में वृद्धि कर दी है। रेलवे के साथ हुए करार में अचानक अपोलो द्वारा किए गए बदलाव से रेलवे प्रशासन सकते में आ गया है, क्योंकि रेलवे अपोलो को सालाना रेल कर्मचारियों के इलाज के लिए 15 करोड़ का भुगतान करता है। ...

    कर्मचारियों के इलाज पर रेलवे करता है 15 करोड़ का भुगतान बिलासपुर !   अपोलो ने रेलवे कर्मचारियों के इलाज में 20 फीसद तक शुल्क में वृद्धि कर दी है। रेलवे के साथ हुए करार में अचानक अपोलो द्वारा किए गए बदलाव से रेलवे प्रशासन सकते में आ गया है, क्योंकि रेलवे अपोलो को सालाना रेल कर्मचारियों के इलाज के लिए 15 करोड़ का भुगतान करता है। अब नए टाइअप के तहत शुल्क में 3 करोड़ तक की बढ़ोत्तरी हो जाएगी। बहरहाल रेलवे ने पुराने टाइअप के तहत छ: माह तक इलाज किए जाने की अपोलो से मांग की थी जिसे अपोलो प्रबंधन ने मंजूर कर लिया है। वहीं रेलवे ने टाइअप के नियमों में बदलाव को लेकर रेल मंत्रालय प्रस्ताव भेज दिया है। प्रस्ताव मंजूर होने के बाद अपोलो और रेल्वे में नया टाइअप होगा।अपोलो में अलग-अलग बीमारियों का शुल्क रेलवे कर्मचारियों के लिए निर्धारित है। शहर में सुपर स्पेशियालटी हास्पिटल नहीं होने के कारण रेलवे को अपोलो के साथ सालाना टाइअप कराना मजबूरी बना हुआ है।गौरतलब है बिलासपुर जोनल रेलवे कर्मचारियों को अनेक प्रकार की परेशानियों से रुबरु होना पड़ता है। सर्वाधिक कमाई कर रेलवे मंत्रालय का खजाना भरने वाला जोन सुविधाओं का अभी भी मोहताज है। कर्मचारियों के लिए बेहतर उपचार की सुविधा देने रेलवे हास्पिटल उपलब्ध है किन्तु कई उपकरणों की व्यवस्था नहीं होने के कारण साधारण चिकित्सा ही होती है। लेकिन जोन हास्पिटल होने से अच्छे इलाज की उम्मीद लिये रेलवे कर्मचारी शहडोल, ब्रिजराजनगर, कोरबा, अनूपपुर, नागपुर मण्डल यहां पहुंचते हैं। उपचार का सारा जिम्मा बाहरी डाक्टरों के कंधों पर है जो अपने क्लिनिक नर्सिंग होम को तवज्जो देने के बाद रेलवे हास्पिटल के पीडि़तों का इलाज करते हैं समय पर डाक्टर नहीं मिलने से मरीज को अपोलो या सिम्स रिफर करते हैं। जिसका भरपूर फायदा अपोलो उठाता है।सूत्रों से मिली जानकारी के अनुसार अपोलो ने रेलवे कर्मचारियों के इलाज का अलग-अलग शुल्क निर्धारित कर रखा है। हार्ट, आंख, किडनी और कैंसर जैसी गंभीर बीमारी का शुल्क ढाई से तीन लाख तक वसूलता है। वहीं हर साल 5 प्रतिशत इन्हीं बीमारियों के इलाज में शुल्क बढ़ोतरी करता है। अब अपोलो की ज्यादती और बढ़ते जा रही है। अब रेलवे कर्मचारियों के अलावा अन्य कंपनी, संस्थानों के कर्मचारियों के इलाज में बीस प्रतिशत शुल्क का इजाफा किया है।अचानक टाइअप के नियमों मं बदलाव होने से रेलवे जोन ने कुछ महीनों की मोहलत मांगी है जिस पर 9 माह का समय अपालो ने दिया है जो कि रेलवे के लिये बहुत कम समय है। वहीं दुबारा जोन द्वारा पहल करने पर 6 माह का समय दिया गया है।छ: माह तक अपोलो अस्पताल में रेलवे कर्मचारियों का इलाज पिछले वर्ष के टाइअप नियमों के तहत ही उपचार होगा। इस संदर्भ में रेलवे हेल्थ चीफ सुपरिटेन्डेंट डा. बी पंडा से चर्चा करने पर उन्होंने बताया कि शहर में सुपर स्पेशयालिटी हास्पिटल नहीं होने के कारण अपोलो के साथ टाइअप कराना मजबूरी है।जिसका भरपूर फायदा उठाते हुए मनमानी पैसे वसूलता है। रेल्वे प्रतिवर्ष एक करोड़ रूपये रेलवे कर्मचारियों के उपचार में खर्च करता है। इन्होंने बताया कि इसी प्रकार का टाईअप रामकृष्णा केयर हास्पिटल और एमजीएम से भी है जहां यहां उपचार की राशि अपोलो से 40 प्रतिशत तक कम है। लेकिन रेलवे की मजबूरी है उपचार कराने आये मरीजों को भेजना पड़ता है।8 डाक्टरों के पद रिक्तरेलवे हास्पिटल में 16 डाक्टरों में 8 डाक्टरों की कमी होने से साल के अनुबंध पर बाहरी डाक्टरों को नियुक्त किया गया है जिसमें फिजीशियन, डायनोक्लॉजी के पैरामेडिसीन के डाक्टरों की कमी अभी भी बनी हुई है।रेलवे हास्पिटल में कार्यरत डाक्टर पहले अपने क्लिीनिक और नर्सिंग होम को महत्व देते हैं उसके बाद रेलवे कर्मचारियों का इलाज करते हैं यहां भी वे अपने कमाई से नहीं चूकते हैं।  वे पीडि़त को को सीधे अपने हास्पिटल भेजते हैं या फिर अपोलो रिफर करते हैं।सिम्स नहीं जाते कर्मचारीसिम्स आयुर्विज्ञान संस्थान की सीटों में वृद्धि की गई लेकिन सुपर स्पेशयालिटी हास्पिटल का इसे दर्ज नहीं मिला है। मगर कोनी में 40 एकड़ जमीन की स्वीकृति मिल गई है। जहां अस्पताल बनने के बाद जिले में उपचार सुविधा को नया आयाम मिलेगा। रेलवे हास्पिटल का टाइअप सालाना सिम्स से भी है लेकिन साल भर में कम ही रेलवे के मरीज रेलवे हास्पिटल से सिम्स रिफर किए जाते हैं जिसका कारण है सिम्स में उपचार की बदहाल व्यवस्था जिस वजह से सीधे मरीज अपोलो पहुंचते हैं।इंकार कर दिया थापहले रेलवे कर्मचारियों का उपचार करने से अपोलो ने इंकार कर दिया था। नए नियमों का हवाला देने पर रेलवे ने जो मोहलत मांगी थी उसे अपोलो ने मंजूर करते हुए छ: माह कर दिया है। वहीं जोन ने एक प्रस्ताव रेलवे मंत्रालय को भेजा है जहां से स्वीकृति मिलने के बाद नया टाइअप रेलवे और अपोलो के बीच होगा। फिलहाल, 6 माह तक रेलवे कर्मचारियों  का उपचार अपोलो में किया जाएगा।रेलवे मेडिकल कालेज का इंतजाररेलवे जोन में मेडिकल कॉलेज का प्रस्ताव है अगर कालेज की बुनियाद रखी गई तो रेलवे कर्मचारियों को उपचार की सुविधाएं देने गैर अस्पतालों से टाइअप करने की आवश्यकता नहीं होगी, लेकिन रेलवे जोन को मेडिकल कालेज खोलने किसी संस्था या फिर बड़ी कंपनी के साथ पार्टनरशिप का इंतजार है।

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