• 'कस्टम मिलिंग' में सरकार का छूटा पसीना

    रायपुर ! समर्थन मूल्य पर किसानों से इस वर्ष खरीदे गए 79 लाख मीट्रिक टन धान की कस्टम मिलिंग कराने में राज्य सरकार के पसीने छूट गए है। आलम यह है कि मिलरों पर सख्ती बरतने के बावजूद अब भी करीब 6 लाख मीट्रिक टन धान प्रदेश के संग्रहण केन्द्रों में रखा है। करीब 10 लाख टन धान मिलरों ने बैंक गारंटी देकर अपने गोदामों में सुरक्षित रखा है।...

    1000 करोड़ का धान अब भी बकायामिलिंग में तीन माह का समय और लगेगारायपुर !   समर्थन मूल्य पर किसानों से इस वर्ष खरीदे गए 79 लाख मीट्रिक टन धान की कस्टम मिलिंग कराने में राज्य सरकार के पसीने छूट गए है। आलम यह है कि मिलरों पर सख्ती बरतने के बावजूद अब भी करीब 6 लाख मीट्रिक टन धान प्रदेश के संग्रहण केन्द्रों में रखा है। करीब 10 लाख टन धान मिलरों ने बैंक गारंटी देकर अपने गोदामों में सुरक्षित रखा है। अगले माह दीपावली के बाद से नए धान की आवक शुरू हो जाएगी। ऐसे में पुराने धान की मिलिंग में तीन माह का समय और लगने की संभावना है। विलंब का एक कारण मार्कफेड के वरिष्ठ अधिकारियों की मनमानी नीतियां हैं, जो समय-समय पर आदेश जारी कर थोपा जाता है। जिसके कारण इस वर्ष अभी तक 900 करोड़ के धान की मिलिंग कराने में जिला कलेक्टरों को काफी मेहनत करनी पड़ रही है। राज्य सरकार ने किसानों से इस वर्ष समर्थन मूल्य पर 79 लाख मीट्रिक टन धान सहकारी समितियों के माध्यम से खरीदा था। इसमें से अब तक करीब 62 लाख टन धान की मिलिंग हो पाई है। हालांकि इसके एवज में 73 लाख मीट्रिक टन धान के लिए डीओ जारी किया गया है। कस्टम मिलिंग की रफ्तार भी इस वर्ष प्रारंभ से धीमी रही है। राइस मिलरों व भारतीय खाद्य निगम के बीच चावल सेम्पल पास करने को लेकर विवाद था। जिससे आक्रोशित मिलर्स तालाबंदी कर हड़ताल पर चले गए थे। इसका असर कस्टम मिलिंग पर सीधे पड़ा है। जानकारी के अनुसार इस वर्ष मिलरों के द्वारा पूरे प्रदेश में अब तक नागरिक आपूर्ति निगम के गोदामों में 23 लाख व भारतीय खाद्य निगम का 18.25 लाख मीट्रिक टन चावल जमा कराया गया है। इस तरह अब तक कुल 41 लाख टन ही  चावल जमा हो गया है। इस तरह 62 लाख मीट्रिक टन धान की मिलिंग हो पाई है। इसके अलावा 5 लाख 79 हजार टन धान आज भी बिलासपुर, जांजगीर, बलौदाबाजार, रायपुर, गरियाबंद व राजनांदगांव जिले के संग्रहण केन्द्रों में रखा गया है। रखरखाव में लापरवाही के चलते कई जगहों पर धान भीगकर खराब हो गया है। संग्रहण केन्द्रों में रखे धान की कीमत 900 करोड़ बताई जाती है। इसी तरह 10 लाख टन के आसपास राइस मिलरों के गोदामों में धान रखा है। बैंक गारंटी देकर यह धान उठाया गया है। राज्य सरकार ने 79 लाख टन धान खरीदा था, लेकिन इसके मुकाबले मिलरों से 20 प्रतिशत अधिक 95 लाख मीट्रिक टन धान की मिलिंग के लिए अनुबंध किया गया है। प्रदेश के मिलर्स व भाखानि के बीच चल रहे विवादों के बावजूद इस वर्ष भाखानि ने 18.25 हजार मीट्रिक टन चावल लिया है। पिछले वर्ष इसी अवधि में 15.91 लाख चावल जमा किया गया था। इसके बावजूद धान की मिलिंग अब तक पूरी नहीं हो पाई है। सूत्रों की मानें तो बकाए धान की मिलिंग में कम से कम दो माह का समय और लगने की संभावना है। इस बीच धान की आवक शुरू हो जाएगी। नए धान के चावल की गुणवत्ता अच्छी रहती है। लिहाजा मिलर्स चाहते हैं कि वे पहले नए धान को उठाएं। क्योंकि पुराने धान का चावल कम गुणवत्ता का होता है। राज्य सरकार यदि पहले पुराने धान की मिलिंग कराने पर जोर देगी तभी कस्टम मिलिंग पूर्ण हो जाएगी। अन्यथा इस वर्ष भी करोड़ों का धान बर्बाद होने की संभावना है। फ्री सेल चावल बनाने में मिलरों की रुचि अधिकराज्य सरकार की नीतियों से हतोत्साहित होकर मिलर्स कस्टम मिलिंग में कम दिलचस्पी ले रहे हैं। इसकी अपेक्षा वे अब फ्री सेल चावल बनाने में अधिक रुचि ले रहे हैं। इसका कारण यह है कि उन्हें चावल का दाम अधिक मिलता है। वहीं नगद भुगतान भी शीघ्र हो जाता है। इसकी अपेक्षा मिलरों को भुगतान के लिए विभाग के कई चक्कर लगाने पड़ते हैं। तब कहीं जाकर भुगतान मिलता है। 

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