• महापौर का पद किसके लिए आज होगा तय

    बिलासपुर ! महापौर पद के लिए कल एक सितम्बर को राजधानी में आरक्षण की प्रक्रिया होगी। कांगे्रस-भाजपा नेताओं की निगाहें आरक्षण पर लगी हुई है। दावेदार अन्य पिछड़ा वर्ग के एवं सामान्य वर्ग के नेता अपने-अपने पक्ष में दावा कर रहे हैं। वैसे ज्यादातर लोगों को महापौर का पद इस बार पिछड़ा वर्ग के लिए आरक्षित होने की उम्मीद है लेकिन राज्य शासन द्वारा दो नए नगर निगम बना देने से सामान्य वर्ग के लोगों को भरोसा है कि इस बार महापौर पद अनारक्षित रहेगा।...

    राजधानी में होगी आरक्षण की प्रक्रिया, दावेदारों में उत्सुकताकांगे्रस व भाजपा के दावेदारों में गहमागहमी,भाजपा की तैयारी तेजकांगे्रस संकट से गुजर रहीबिलासपुर !   महापौर पद के लिए कल एक सितम्बर को राजधानी में आरक्षण की प्रक्रिया होगी। कांगे्रस-भाजपा नेताओं की निगाहें आरक्षण पर लगी हुई है। दावेदार अन्य पिछड़ा वर्ग के एवं सामान्य वर्ग के नेता अपने-अपने पक्ष में दावा कर रहे हैं। वैसे ज्यादातर लोगों को महापौर का पद इस बार पिछड़ा वर्ग के लिए आरक्षित होने की उम्मीद है लेकिन राज्य शासन द्वारा दो नए नगर निगम बना देने से सामान्य वर्ग के लोगों को भरोसा है कि इस बार महापौर पद अनारक्षित रहेगा।स्थानीय निकायों के चुनाव में वर्ष 2009 में सत्तारूढ़ दल भाजपा को महापौर के पदों पर भारी नुकसान हुआ था। बिलासपुर, रायपुर, भिलाई, राजनान्दगांव में भाजपा के प्रत्याशी चुनाव हार गए थे। जबकि शहरी क्षेत्रों में भाजपा का जनाधार व्यापक माना जाता है। इन शहरों भाजपा लोक सभा व विधान सभा का चुनाव लगातार जीतते आ रही है। महापौर के चुनाव में प्रत्याशी चयन सही नहीं से भाजपा को हार का सामना करना पड़ा था। भाजपा इस बार सतर्क नजर आ रही है और निश्चित ही प्रत्याशी चयन को लेकर वह किसी भी प्रकार की लापरवाही नहीं करेगी लेकिन पिछले चुनाव में जीते कांगे्रस के महापौरों का पांच वर्ष में कोई उल्लेखनीय उपलब्धि नहीं रही जिसके आधार पर जनता दुबारा कांगे्रस को समर्थन दे। हालांकि स्थानीय निकायों के चुनाव काफी हद तक पार्टी के बदले प्रत्याशियों के व्यक्तिगत पर निर्भर करता है। पिछले चुनाव में कांगे्रस प्रत्याशियों का प्रभाव भाजपा के उम्मीदवारों पर भारी पड़ा था। इस बार प्रत्याशियों के व्यक्तित्व और प्रभाव पर ही मतदाताओं का रूझान रहेगा। कांगे्रस के महापौरों को राज्य शासन ने इस लायक भी नहीं रखा कि वे 5 वर्ष में अपनी व पार्टी की छवि जनता के सामने बना सके। राज्य शासन व कांगे्रसी महापौर एक दूसरे से परे 5 वर्ष परेशान रहे और एक दूसरे पर आरोप मढ़ते रहे। अब जबकि कल एक सितम्बर को महापौर पदों के लिए राजधानी में आरक्षण की प्रक्रिया होगी, महापौर पद के प्रतीक्षा कर रहे हैं। बिलासपुर में महापौर पद के दावेदारों में पिछड़ा वर्ग के नेताओं की बहुतायत है। उन्हें पूरी उम्मीद है कि इस बार महापौर का पद पिछड़ा वर्ग के लिए आरक्षित होगा। कांगे्रस व भाजपा के नेताओं में सक्रियता बढ़ गई है। बिलासपुर महापौर का पद महिला के लिए आरक्षित हो इसकी सम्भावना बहुत कम है क्योंकि वर्ष 2009 के चुनाव में महिला सामान्य रहा है। ऐसी स्थिति में फिर से महिला सामान्य था पिछड़ा वर्ग महिला के लिए महापौर का पद आरक्षित नहीं हो सकेगा। नगरीय निकाय मंत्री अमर अग्रवाल के बारे में महापौर के दावेदारों का मानना है कि महापौर का पद चाहे सामान्य हो या फिर किसी भी वर्ग के लिए आरक्षित हो श्री अग्रवाल के पास हर तरह के उम्मीदवार हैं मुश्किल  तो कांगे्रस नेताओं के समक्ष है। कांगे्रस अभी संकटकाल से गुजर रही है। अंतागढ़ चुनाव में प्रत्याशी के नाम वापसी से कांगे्रस सदमें में है और गुटीय संघर्ष चरम सीमा पर है ऐसे में नगरीय निकायों के चुनाव के लिए कांगे्रस में प्रत्याशी चयन को लेकर देरी हो सकती है तथा कांगे्रस नगरीय निकाय चुनाव में भी अधिकृत प्रत्याशी के साथ ही डमी प्रत्याशी अनिवार्य रूप से खड़ा कर दे तो कोई आश्चर्य नहीं होगा। अंतागढ़ के कांगे्रस पत्याशी की हरकत का असर यहां भी पड़ रहा है। महापौर पद के एक दावेदार ने तो यहां तक कह दिया है कि वे पार्टी से मागेंगे पार्टी यदि उसे महापौर प्रत्याशी बनाती है तो वह भले ही चुनाव हार जाए मगर मंतुराम पवार जैसे कृत्य नहीं करेगा।  भाजपा के महापौर दावेदार अपनी ओर से तैयारी तो कर रहे हैं लेकिन सभी नगरीय निकाय मंत्री अमर अग्रवाल की इच्छा पर निर्भर हैं। सभी चाहते हैं कि श्री अग्रवाल उनके ऊपर कृपा बरसा दें मगर सभी श्री अग्रवाल के व्यवहार और उनकी रणनीति से अच्छी तरह वाकिफ है। श्री अग्रवाल के मन में क्या है कोई नहीं जानता। बहरहाल महापौर पद के आरक्षण को लेकर सभी को उत्सूकता है कल शाम तक स्थिति स्पष्ट हो जाएगी।

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