• आज भी महिलाओं को नहीं मिली पूरी आजादी

    नोएडा ! आज देश अपना स्वतंत्रता दिवस मना रहा है। इस दिवस में सभी बच्चे, बडे बुजुर्ग एक जुटहोकर आजाद भारत के गुणगाान करते नजर आ रहे हैं। लेकिन इन सबके पीछे एक दबी आवाज है जिसे अभी भी स्वंतंत्रता मिलने की आस है। वो आवाज है महिलाओं की। आजादी के जश्न में महिलाएं आज आजादी के सपने तो देख रही हैं लेकिन पूरे कब होंगे इनका अंदाजा भी इनको नहीं है। शालिनी खारी का कहना है कि कोई बलात्कार, छेडखानी के मामलों में कहता है विचारों में बदलाव ज़रूरी है, किसी का मानना है कि शिक्षा और जागरूकता से ऐसी घटनाओं में कमी आएगी।...

    दिल्ली समेत पूरे एनसीआर में महिलाओं के प्रति हिंसा बढ़ीनोएडा !  आज देश अपना स्वतंत्रता दिवस मना रहा है। इस दिवस में सभी बच्चे, बडे बुजुर्ग एक जुटहोकर आजाद भारत के गुणगाान करते नजर आ रहे हैं। लेकिन इन सबके पीछे एक दबी आवाज है जिसे अभी भी स्वंतंत्रता मिलने की आस है। वो आवाज है महिलाओं की। आजादी के जश्न में महिलाएं आज आजादी के सपने तो देख रही हैं लेकिन पूरे कब होंगे इनका अंदाजा भी इनको नहीं है।  शालिनी खारी का कहना है कि कोई बलात्कार, छेडखानी के मामलों में कहता है विचारों में बदलाव ज़रूरी है, किसी का मानना है कि शिक्षा और जागरूकता से ऐसी घटनाओं में कमी आएगी।  लेकिन जब पढ़े-लिखे और जागरूक आईएफएस अधिकारियों पर इस तरह के आरोप सामने आते हैं तो सोच फिर एक नई दिशा तलाशने लगती है कि आखिर वजह क्या है और समाधान कैसे होगा? गृहणि सविता सिन्हा का कहना है कि दिनदहाड़े सवारियों से भरी बस में एक लड़की को चार-पांच गुंडे घेर लेते हैं, उसके साथ छेड़छाड़ करते हैं। लेकिन बस में बैठा एक भी शख्स उस लड़की की मदद के लिए आगे नहीं आता है। रास्ते पर अकेली खड़ी लड़की को राह चलता कोई भी बाइक या साइकिल सवार अश्लील बातें सुनाकर चला जाता है। खचाखच भरी बस में चढऩा तो लड़कियों के लिए जैसे सबसे बड़ा पाप है। फिर तो बिना किसी की गंदी नजऱें झेले या घटिया कमेंट सुने आप नीचे उतर ही नहीं सकते।  गïृहणि मिनाक्षी का कहना है कि हर वर्ष आठ मार्च को महिला दिवस पर आसपास नजर घुमाते हैं तो विडंबनाओं से भरी कचोटने और कई सवाल खड़े करने वाली एक अलग तस्वीर भी सामने आती है। इस कड़वे सच को नहीं झुठलाया जा सकता है कि आज महिलाएं जहां एक ओर अपनी योग्यता, पराक्रम और उद्यमशीलता से रोज नए प्रतिमान बना रही हैं, वहीं बहुसंख्यक महिलाएं शोषण, अत्याचार और हिंसा का शिकार हैं। महिलाएं कौतुक और विस्मय का विषय बन गई हैं और उसकी सुघड़ता, कुशलता, प्रखरता एवं योग्यता के बदले उसके रंग-रूपए, यौवन, आकार की मानसिकता हावी हो गई है।अध्यापिका रीना का कहना है कि महिलाओं के सम्मान और सुरक्षा को लेकर अकसर ही सवाल खडे होते हैं। लडकियां आजाद नहीं है। आज घर के लोगों की मानसिकता बदली है लेकिन समाज में आज भी हैवान हैं। जो लड़कियों को बाहर निकलने नहीं देना चाहते। महिलाएं आज अपनी पसंद से काम कर सकती हैं, अपना क्षेत्र चुन सकती है लेकिन वे आज देर रात अकेले बाहर नहीं निकल सकती। ऐसा क्यों? सामाजिक बेशर्मी और प्रशासनिक शिथिलता के कारण इसके उत्तर लापता हैं। 16 दिसंबर 2012 को निर्भया बलात्कार कांड के बाद क्या गुबारों का बारूद नहीं फट पड़ा था। लेकिन देश और दुनिया को दहलाकर रख देने वाली उस घटना के बाद क्या यौन हिंसा रुक गई नहीं। एक्सपोर्ट हाउस की फराह का कहना है कि औरत का अपना स्वयं का जीवन भी तो किसी बड़ी चुनौती से कम नहीं है एक छोटी सी बच्ची से लेकर युवा महिला ,प्रौढ़ा ,वृद्धा सभी कि अपनी चुनौतियां हैं जो अनंत कल से आज भी बनी हुई हैं। घर से निकलते ही नुकड़ वाले चाय वाले से लेकर सड़क के असंख्य छोटे बड़े हर वर्ग के एहर उम्र के पुरुष एक लड़की को ऐसे घूरते हैं जैसे वो लड़की कोई नुमाइश की वस्तु हो। बस में दुकानों में यहाँ तक की मंदिरों तक की भीड़ में एक लड़की हमेशा ये सोच कर चिंता मुक्त नहीं हो पाती की पता नहीं जाने कब कौन उसे छेड कर निकल जाए।दीपा पंत का कहना है कि बलात्कार, यौनशोषण व छेडखानी जैसे मामलों में समाज भी लड़कियों को ही हिदायतें देता है कि ठीक से कपडे पहनो ज्यादा हंसो मत, वरना किसी दुर्घटना कि शिकार हो सकती हो ऐसा लगता है कि पुरुषों को यह संवैधानिक हथियार प्राप्त है कि यदि किसी महिला के कपडे या आचरण में कोई कमी पायें तो वे तुरंत बलात्कार एया यौन शोषण नमक हथियारों से महिलाओं को दण्डित करें। ज्यादातर लड़कियां बड़ी दुर्घटनाओं से भले ही बच जांए पर शायद ही कोई लडकी हो जिसने दो चार बार अश्लील टिप्पणियों को न झेला हो

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