जयपुर ! दुनिया में एक नए वायरस का खतरा मंडरा रहा है। अफ्रीकी देशों में ईबोला नाम का वायरस का प्रकोप बढ़ रहा है। बहुत से लोग इससे संक्रमित हो रहे हैं। ये वायरस पहले तो बुखार, सिर दर्द आदि के रूप में अपना असर दिखाता है और फिर धीरे-धीरे इंसान के लीवर और किडनी तक पहुंच जाता है। वर्ल्ड हेल्थ ऑर्गेनाइजेशन ने बताया कि अब तक ईबोला के प्रकोप से 700 लोग मर चुके हैं।इससे ग्रस्त 1,300 से ज्यादा मामले सामने आ चुके हैं। गिनी में 460 मामलों में 339 लोगों की मौत हो चुकी है। वही सीएरा लीयोन में 533 में से 233 और लाइबेरिया में 329 में से 156 लोग इस बीमारी के कारण मर चुके हैं। अलग-अलग देशों से बहुत से लोग इन अफ्रीकी देशों में जाते हैं। यहां दूसरे देशों के कई एनजीओ भी चलते हैं। अगर उनमें से कोई भी शख्स इस वायरस से संक्रमित होकर देश लौटा तो उस देश में भी ईबोला वायरस फैल सकता है। इसलिए इसके उपचार के लिए जल्द से जल्द वैक्सीन की खोज करना जरूरी है। हाल ही में अमेरिका से एक रेस्क्यू टीम पश्चिमी अफ्रीका पहुंची। वहां ईबोला वायरस से ग्रस्त दो अमरीकी नागरिक मिले हैं, जिन्हें इस हफ्ते पूरी एहतियात के साथ वापस अमरीका लाया जाएगा। ये पहली बार होगा जब किसी ईबोला के मरीज का अमरीका में इलाज किया जाएगा। इस बारे में एक प्रवक्ता ने कहा कि अमरीकी नागरिकों की सुरक्षा हमारी सबसे बड़ी चिंता है। ईबोला से ग्रस्त दोनों मरीजों की सुरक्षा और इलाज के लिए बहुत एहतियात रखे जाएंगे और अमरीका पहुंचने पर भी उन्हें सबसे अलग रखा जाएगा।इबोल वायरस एक ऐसा वायरस है, जिससे ईबोला वायरस बीमारी (ईवीडी) या ईबोला रक्तस्त्राव बुखार (ईएचएफ) होता है।सबसे पहले ये वायरस 1976 में सुडान और कांगो लोकतांत्रिक गणराज्य में पाया गया था। ये बीमारी उप सहारा अफ्रीका के ऊष्णकटिबंधीय क्षेत्रों में फैली है। वर्ष 1976 से 2013 त कम से कम 1,000 लोग प्रति वर्ष इस लोग से संक्रमित हुए। वर्ष 2014 यानि चालू वर्ष में इसका सबसे ज्यादा प्रकोप पश्चिमी अफ्रीका में फैल रहा है, जिससे गिनी, सीएरा लीयोन, लाइबेरिया और संभावित रूप से नाइजीरिया प्रभावित हो रहे हैं। जुलाई, 2014 तक इसके 1320 से भी ज्यादा संक्रमित लोग प्रकाश में आए हैं। इसके इलाज के लिए वैक्सीन खोजा जा रहा है, लेकिन अब तक कोई सफलता नहीं मिली है। इसके लक्षण वायरस के संपर्क में आने के 2 दिन से 3 हफ्ते में फैलते हैं। इसके लक्षण हैं- बुखार आना, गले में खराश, मांसपेशियों में दर्द, सिरदर्द, जी मिचलाना, उल्टी, डायरिया आदि हैं। इससे लीवर और किडनी काम करना कम कर देते हैं। इस स्थिति में कुछ लोगों में रक्तस्त्राव की समस्या शुरू हो जाती है।ये वायरस संक्रमित जानवर विशेष तौर में बंदर, फ्रुट बेट (चमगादड़ या उडऩे वाली लोमड़ी) और सुअरों के खुन या शरीर के तरल पदार्थ से फैलता है। ये हवा के संपर्क में आने से नहीं होता है। ?सा माना जाता है कि फ्रुट बेट बिना प्रभावित हुए भी इस वायरस को फैला सकता है। एक बार कोई इंसान इस वायरस से संक्रमित हो जाता है, तो फिर ये बाकी लोगों में भी फैलने लगता है। इसके अलावा इससे संक्रमितों के मरने के बाद उनके शरीर को ठीक तरह से खत्म नहीं करने पर भी ये वायरस फैलने की संभावना रहती है।कैसे करें बचावजानवरों में संक्रमण की जांच करना और संक्रमण होने पर उन्हें मारकर उनके शरीर को ठीक ने डिस्पोस करना। मांस को अच्छी तरफ पकाना। मांस को बनाते समय सुरक्षित कपड़े पहनना। इस वायरस से संक्रमित व्यक्ति से आस पास होने पर सुरक्षित कपड़े पहनना और हाथों को धोना। इससे ग्रस्त लोगों के शरीर के तरल पदार्थ और टिश्यूज के नमूने विशेष सावधानी के साथ संभाले जाने चाहिए। अब तक इस बीमारी का कोई विशेष उपचार नहीं है। फिर भी इससे ग्रस्त लोगों की मदद के लिए उन्हें ओरल रिहाईड्रेशन थैरेपी, जिसमें रोगी को मीठा और नमकीन पानी पीने के लिए दिया जाता है या नसों में तरल पदार्थ दे सकते हैं। इस रोग में मृत्यु दर काफी ऊंची है। ईबोला वायरस से ग्रस्त लोगों की 50 फीसदी से 90 फीसदी तक मरने की संभावना रहती है।