• खुले में 1350 करोड़ का धान

    प्रदेश में किसानों से समर्थन मूल्य पर खरीदे गए धान की अब तक कस्टम मिलिंग नहीं हो पाई है। करीब 9 लाख मेट्रिक टन धान आज भी संग्रहण केन्द्रों के खुले मैदान में रखा है। ...

    28 लाख मेट्रिक टन की कस्टम मिलिंग बाकीरायपुर !   प्रदेश में किसानों से समर्थन मूल्य पर खरीदे गए धान की अब तक कस्टम मिलिंग नहीं हो पाई है। करीब 9 लाख मेट्रिक टन धान आज भी संग्रहण केन्द्रों के खुले मैदान में रखा है। 1350 करोड़ के इस धान को सुरक्षित रखने कोई खास इंतजाम नहीं किए गए हैं। मार्कफेड के अधिकारियों ने केवल तालपत्री ढांककर अपने कत्र्तव्यों की इतिश्री कर ली है। लिहाजा बारिश में रायपुर, दुर्ग, जांजगीर-चांपा, राजनांदगांव, बिलासपुर, रायगढ़ सहित अन्य जिलों में धान भीगने से खराब हो रहा है। किसानों से 79 लाख मेट्रिक टन धान खरीदा गया था। इसमें से अब तक केवल 51 लाख मेेट्रिक टन की कस्टम मिलिंग हो पाई है। शेष 28 लाख मेट्रिक टन धान की कस्टम मिलिंग में कम से कम तीन माह का समय और लगने की संभावना है। इसी तरह वर्ष 2012-13 का 2 लाख मेट्रिक धान बकाया है। राज्य सरकार प्रतिवर्ष धान खरीदी का लक्ष्य बढ़ा रही है, लेकिन धान के भंडारण व रखरखाव पर ध्यान नहीं दे रही है। धान के खराब होने से चावल की गुणवत्ता प्रभावित है। इसे लेकर भारतीय खाद्य निगम के अधिकारियों के बीच विवाद होता है। जिससे धान की मिलिंग क्षमता प्रभावित होती है। प्रदेश के राइस मिलरों ने अब तक 51 लाख मेट्रिक टन धान का उठाव किया है। 9 लाख मेट्रिक टन धान आज भी संग्रहण केन्द्रों के खुले मैदान में पड़ा है। शेष धान मिलरों के गोदाम में रखा है। जिससे सरकार को थोड़ी राहत मिली है। भारतीय खाद्य निगम व नागरिक आपूर्ति निगम को 34-40 हजार मेट्रिक टन चावल मिलरों ने जमा किया है। कस्टम मिलिंग कार्य प्रभावित होने के लिए राज्य सरकार की नीतियां भी काफी जिम्मेदार हंै। किसानों से धान खरीदी के बाद सुरक्षित रखने की जिम्मेदारी मार्कफेड पर है। परिवहन कार्य समय पर नहीं होने से धान वर्षा ऋतु के प्रारंभ होने तक संग्रहण केन्द्रों में रखा रहता है। कई बार असमय वर्षा होने से बचाने के लिए भी कोई उपाय नहीं किए जाते हैं। लिहाजा धान भीग जाता है। इसे लेकर दोनों पक्ष एक-दूसरे पर आरोप मढ़ते हैं।धान खराब होने पर कस्टम मिलिंग के लिए राज्य सरकार अंतत: मिलरों पर दबाव बनाती है। जिस धान का चावल खाने योग्य नहीं रहता है, उसे भी मिलर्स सरकार को सौंपते हैं। वर्ष 2012-13 का धान करीब 5 लाख मेट्रिक टन बकाया था। जिस धान को मिलर्स सड़ा हुआ बता रहे थे, शासन के आदेश पर उसी धान का चावल बनाकर दे रहे हंै। आज की स्थिति में यह धान करीब 2 लाख मेट्रिक टन रह गया है। इससे अंदाजा लगाया जा सकता है कि सरकार किस तरह का चावल प्रदेश की जनता को सार्वजनिक वितरण प्रणाली के तहत सप्लाई कर रही है।

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