जर्जर हैं कई निजी वाहननोएडा ! निजी स्कूली वाहनों में नन्हें-मुन्नों का सफर कितना सुरक्षित है ये सवाल है। ज्यादातर स्कूल वाहन मानकों को पालन नहीं करते। कई वाहन जर्जर हैं। अभिभावक अपने बच्चों को ऐसे वाहनों में भेजने को मजबूर हैं। जिला प्रशासन के नरम रुख के कारण ऐसे वाहन धड़ल्ले से चल रहे हैं। शहर में एक दर्जन से ज्यादा ऐसे स्कूल हैं जो सभी सेक्टरों व उसके अंदर तक की ट्रांसपोर्ट सुविधा मुहैया नहीं कराते। ऐसे में अभिभावकों के पास दो ही विकल्प हैं। या तो वे खुद बच्चों को स्कूल छोडऩे जाएं या निजी वाहनों का सहारा लें। ट्रैफि क पुलिस वालों के सामने ये खटारा वाहन बच्चों को भर निकल जाते हैं मगर कोई कार्रवाई नहीं होती है। एक वैन में 20 बच्चों को ढोया जा रहा है। इन वैन में एलपीजी किट का इस्तेमाल हो रहा है जिससे आग लगने की आशंका बनी रहती है। ऐसे में इन वाहनों में सफर करने वाले बच्चे अपनी परेशानियों को बयां कर रहे हैं। कक्षा चार में पढऩे वाला तनीष कहते हैं कि हमारी वैन में 20 बच्चे हैं। अंकल सबको अंदर दबा-दबा कर बैठा देते हैं। गर्मी लगती है और बदबू भी आती है। कभी-कभी पुलिस वाले अंकल वैन वाले ड्राईवर को अंकल रोकते हैं और फिर डांटकर वापस भेज देते हैं। खुशी , कक्षा 6 का कहना है कि वे ऑटो में जाती है। 10 बच्चे ऑटो में सफर करते हैं। दो बच्चे अंकल के साथ बैठते हैं और बाकी 8 बच्चे पीदे बैठते हैं। जो बच्चे आगे बैठते हैं उन्हें ऑटो चलाने के बारे में कई सारी जानकारी हो गई है। निखिल बताते हैं कि वो ऑटो में जाते हैं। लेकिन ऑटो वाले अंकल उन्हें अपने साथ आगे वाली सीट पर बैठा कर ले जाते हैं जिससे पीठ में दर्द भी होने लगता है। ऑटो का हार्न कानों में चुभता है। ऑटो वाले अंकल को मैं पीछे बैठने के लिए कहता हूं तो कहते हैं कि वहां जगह नहीं है।असुरक्षित है सफर कोई स्कूल बस संचालित कर रहा है, तो उसमें मात्र एक कंडक्टर होता है, जो बच्चों को बस में चढ़ाता उतारता है। टेम्पो, ऑटो और वैन में तो ड्राइवर ही होता है। नियमानुसार एक ओटो में 4 से 6 बच्चों को बिठाने की अनुमति है, जबकि ऑटो में आठ से 10 बच्चे बिठाए जाते हैं। जबकि हालत यह है बच्चों को जानवरों की तरह ठूसा जाता है। उस पर बाहर तक बस्तें लटके हुए रहते हैं यहीं नहीं छोटे बच्चों को भी बीच में पटिये का जुगाड़ लगाकर बैठा दिया जाता है। इसका ध्यान न स्कूल प्रशासन रखता है न ही परिवहन विभाग।अभिभावकों की क्या है रायअभिवावकों का कहना है कि वैन में ज्यादा बच्चे होने के कारण बच्चों को परेशानी हो जाती थी। उसका सांस लेना तक मुश्किल हो जाता था। वाहनों में जरूरत से ज्यादा बच्चे भर लेते हैं। व्यस्त समय के कारण निजी वाहन लगाना मजबूरी है। अगर जिला प्रशासन सख्ती करे तो ऐसे वाहनों पर अंकुश लगाया जा सकता है।