• मलेरिया अभी भी एक गम्भीर चुनौती (25 अप्रैल : विश्व मलेरिया दिवस पर विशेष)

    मलेरिया एक ऐसी बीमारी है जो हजारों वर्षो से मनुष्य को अपना शिकार बनाती आई है। विश्व की स्वास्थ्य समस्याओं में मलेरिया अभी भी एक गम्भीर चुनौती है। पिछले दो दशकों में हुए तीव्र वैज्ञानिक विकास और मलेरिया के उन्मूलन के लिए चलाए गए वैश्विक कार्यक्रमों के बावजूद इस जानलेवा बीमारी के आंकड़ों में कमी तो आई है लेकिन अभी भी इस पर पूरी तरह नियंत्रण नहीं पाया जा सका है। ...

    नई दिल्ली, 24 अप्रैल। मलेरिया एक ऐसी बीमारी है जो हजारों वर्षो से मनुष्य को अपना शिकार बनाती आई है। विश्व की स्वास्थ्य समस्याओं में मलेरिया अभी भी एक गम्भीर चुनौती है। पिछले दो दशकों में हुए तीव्र वैज्ञानिक विकास और मलेरिया के उन्मूलन के लिए चलाए गए वैश्विक कार्यक्रमों के बावजूद इस जानलेवा बीमारी के आंकड़ों में कमी तो आई है लेकिन अभी भी इस पर पूरी तरह नियंत्रण नहीं पाया जा सका है।

    मच्छर के काटने से फैलने वाली इस बीमारी के स्वरूप और संक्रामकता को देखते हुए विश्व स्वास्थ्य संगठन (डबल्यूएचओ) ने पाया कि इस बीमारी से निपटने के लिए सरकारी उपायों के साथ-साथ लोगों में मलेरिया के प्रति जागरूकता भी आवश्यक है। इसे ध्यान में रखते हुए डबल्यूएचओ की संस्था वर्ल्ड हेल्थ एसेम्बली की मई 2007 की 60वें सत्र की बैठक में 25 मई को विश्व मलेरिया दिवस मनाने का निर्णय लिया गया।

    भारत में मलेरिया की स्थिति पर अगर गौर करें तो स्वतंत्रता के बाद से अब तक हजारों लोग इस बीमारी की चपेट में आकर अपनी जान गंवा चुके हैं। मलेरिया एक जटिल बीमारी है। मानव गतिविधियां और प्राकृतिक आपदाएं जैसे अत्यधिक वर्षा, बाढ़, सूखा और अन्य आपदाएं इस बीमारी की संक्रमण क्षमता को तेजी से बढ़ाती हैं।

    स्वास्थ्य मंत्रालय के राष्ट्रीय मच्छर जनित रोग नियंत्रण कार्यक्रम (एनवीबीडीसीपी) देश में प्रतिवर्ष करीब 15 लाख मलेरिया के मरीजों की संख्या दर्ज करता है। इनमें से 50 प्रतिशत मलेरिया प्लैसमोडियम फैल्सीपरम मच्छर के काटने से फैलता है। एनवीबीडीसीपी द्वारा जारी पिछले 10 वर्ष के आकंड़ों पर अगर गौर करें तो मलेरिया से देश में वर्ष 2001 में 1005, 2002 में 973, 2003 में 1006, 2004 में 949, 2005 में 963, 2006 में 1707, 2007 में 1311, 2008 में 1055, 2009 में 1144 और 2010 में 767 लोगों की जान गई है।

    स्वतंत्रता के बाद मलेरिया पर रोकथाम के लिए भारत सरकार ने वर्ष 1953 में राष्ट्रीय मलेरिया नियंत्रण कार्यक्रम (एनएमसीपी) चलाने के साथ ही डीडीटी का छिड़काव शुरू किया, जबकि वर्ल्ड हेल्थ एसेम्बली के अनुरोध पर वर्ष 1958 में राष्ट्रीय मलेरिया उन्मूलन कार्यक्रम (एनएमईपी) और आगे चलकर मोडिफाइड प्लान ऑफ ऑपरेशन (एमपीओ) नाम से नई योजना शुरू की गई।


    हाल के वर्षो में उड़ीसा, झारखण्ड और छत्तीसगढ़ से मलेरिया के मामलों में तेजी से वृद्धि हुई है इनके अलावा अन्य राज्यों में भी इस महामारी का खतरा बना हुआ है। पिछले दशकों में शहरी इलाकों में भी मलेरिया के मामले तेजी से सामने आए हैं। मलेरिया के प्रभावी रोकथाम और इलाज तक पहुंच के सीमित साधन होने की वजह से जनजातीय लोगों और गरीबों में इस बीमारी का खतरा ज्यादा बना रहता है।

    सरकार ने एमपीओ कार्यक्रम के तहत मलेरिया फैलने की पूर्व सूचना, शुरू में ही इस बीमारी की पहचान और त्वरित कार्रवाई के लिए कदम उठाने की व्यवस्था की है। पूर्वोत्तर के सभी राज्यों को सौ प्रतिशत मदद देने का भरोसा और लोगों को जागरूक करने के लिए देशभर में मलेरिया विरोधी महीना की शुरुआत की गई है।

    इसके अलावा देश के सात राज्यों आंध्र प्रदेश, बिहार, गुजरात, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, उड़ीसा और राजस्थान में मलेरिया पर नियंत्रण के लिए सरकार ने विश्व बैंक की मदद से सितम्बर 1997 से परिष्कृत मलेरिया नियंत्रण कार्यक्रम की शुरुआत की है।

    मलेरिया के मच्छरों को नष्ट करने के लिए कीटनाशकों के छिड़काव और जैव पर्यावरण उपायों को अपनाने पर जोर दिया गया है। स्वास्थ्य मंत्रालय ने देशभर के कुल 53,544 उप स्वास्थ्य केंद्रों पर 53,500 पुरुष स्वास्थ्यकर्मियों को तैनात करने का निर्णय लिया है। पूर्वोत्तर राज्यों में खासकर मेघालय के शिलांग में कक्षा पांचवीं के विद्यार्थियों को मलेरिया के प्रति जागरूक करने के लिए उनके बीच कॉमिक पुस्तकों का वितरण किया गया है।

अपनी राय दें