बिलासपुर । वनों से अच्छादित अचानकमार अभ्यारण्य को एक अधिसूचना के तहत टाइगर रिजर्व एरिया घोषित कर दिया गया। पूर्व में ये राज्य शासन के दस्तावेज में ही प्रस्तावित था। इसकी स्थापना 1975 में हुई थी। बरसों से शहरवासियों, बुद्धिजीवियों समाजसेवी और पर्यावरण प्र्रेमियों की मांग थी कि अचानकमार अभ्याण्य को टाइगर रिजर्व एरिया घोषित किया जाए। यह बताना लाजमी होगा कि साल, बांस, मिश्रित एवं सागौन वृक्षारोपण से अच्छादित अभ्यारण्य उत्तर पश्चिम एवं सतपुड़ा रेंज के मैकल श्रेणी के पूर्वी भाग में स्थित है। 953 वर्ग किलोमीटर के वन क्षेत्र में 551.552 वर्ग किलोमीटर अभ्यारण्य का भाग तथा लगभग 480 वर्ग कि.मीटर कोर एरिया इसमें बफर जोन लोरमी, खुड़िया और बेलगहना शामिल है।अभ्यारण्य का संपूर्ण एरिया आरक्षित वन के श्रेणी में हैं। मनियारी नदी इस अभ्यारण्य की जीवन रेखा है। क्योंकि पूरे अभ्यारण्य में इस नदी ने कई भागों में विभक्त होकर वन और वन्य प्राणियों को पोषित करती है। यहां शेर, तेंदुआ, गौर, माउस डियर, उड़न गिलहरी कोहरी, वनभैंसा, चौंसिंघा, लक्कड़बग्घा, सियार सहित 50 प्रकार के स्तनधारी को देखा गया है। राष्ट्रीय पक्षी मोर, मैना, बटेर, नीलकंठ, किंगफिशर बाज के साथ 200 से अधिक पक्षी की प्रजातियां पाई जाती है। 30 से अधिक प्रजाति सरीसृप एवं 50 से अधिक प्रकार की तितलियां हैं। वहीं साल, सागौन, साजा, धावड़ा, कुसुम, हल्दू, तेंदू बांस के साथ 50 से अधिक वृक्ष की प्रजातियां पाई जाती है। सबसे महत्वपूर्ण है कि 600 से अधिक प्रकार की वनो औषधियों की प्रजाति है। यहां बैगा आदिवासी अपनी जीवन शैली एवं रहन-सहन के कारण एक विशिष्ट पहचान बनाए हुए हैं। बताते हैं कि अचानकमार अभ्यारण्य में 30 से 32 बाघ है। इसी तरह तेंदुआ वन्य प्राणी को असानी से विचरण करते देखा जा सकता है। अचानकमार अभ्यारण्य को टाइगरों के रहवास के लिए रिजर्व रखने की बहुप्रतिक्षित मांग आज पूरी हो गई। इस अभ्यारण्य को अब पूर्णता वैधानिक मान्यता मिल गई है। पूर्व में यह राज्य शासन के दस्तावेज तक सीमित थी। विकासशील फाउण्डेशन शिवतराई की लक्ष्मी जायसवाल ने कहा कि अचानकमार को वैधानिक मान्यता मिलने से बाघों के संरक्षण बल मिलेगा। इससे बाघों की संख्या भी बढ़ेगी। डब्ल्यू-डब्ल्यू एफ की कोआर्डिनेटर नेहा सैम्यूल कहती हैं कि यह हर्ष का विषय है राज्य शासन ने अचानकमार अभ्यारण्य को टाइगर रिजर्व एरिया घोषित कर दिया है। क्योंकि छत्तीसगढ़ में टाइगरों का आखरी रिसोर्ट अचानकमार है। केन्द्र सरकार से पूर्व में ही हरी झण्डी मिल गई थी। राज्य शासन की यह निर्णय सराहनीय है। डब्ल्यू-डब्ल्यू एफ की बहुत दिनों से मांग थी। इससे बाघों के अवैध शिकार पर अंकुश लगेगा। ग्रामीण उत्थान पर्यावरण कार्यकर्ता शिव साहू कहते हैं कि टाइगर रिजर्व घोषित तो हो गया लेकिन साथ ही साथ स्थानीय लोगों को बेहतर ढंग से बसाना चाहिए।