तकनीक से अपराध रोकेगी पुलिस, हो रही है सफल 'युवा’ कोशिश
देश की राजधानी में युवाओं में अमीर बनने की ललक, सामाजिक, आर्थिक हालात व कुंठा से जहां युवा पीढ़ी अपराध की ओर आकर्षित हो रही है

अनिल सागर
नई दिल्ली। देश की राजधानी में युवाओं में अमीर बनने की ललक, सामाजिक, आर्थिक हालात व कुंठा से जहां युवा पीढ़ी अपराध की ओर आकर्षित हो रही है वहीं दिल्ली की पुलिस मानवीय चेहरे के साथ युवाओं को सुधारने की दिशा में भी बढ़ रही है। तकनीक का सहारा लेने के लिए उसने तकनीकी प्रकोष्ठ बनाया है और युवाओं की मनमानी, शराब पीकर हुडदंग पर सख्ती से भी हिचकती नहीं है। इसीलिए लगभग सौ करोड़ रूपए चालान से जुटाने वाली दिल्ली पुलिस ने पहली बार रिकार्ड 2688 आबकारी अधिनियम में मामले दर्ज किए हैं।
देश विदेश के विशिष्टमेहमानों सहित लगभग 1227 वीवीआईपी और साल भर में 4116 धरने प्रदर्शन को शांति से अंजाम देकर उसकी चुनौती है कि अपराध पर काबू रखने के लिए समाज से जुड़ कर नीतियों पर अमल लाया जाए। इस कड़ी में बीट अधिकारी को सशक्त करना, वाहनों का बेड़ा उतारना, महिलाओं को पीसीआर में तैनात करने के साथ साथ झुग्गी बस्तियों में रहने वाले युवाओं की नब्ज टटोलने व रोजगार के सहारे उन्हें अपराध की डगर से रोकने की चुनौतियों को भी झेल रही है।
दिल्ली के स्लमइलाके में रहने वाली मारिया (बदला हुआ नाम)15 साल में विवाह के बंधन में बंध गई और दो बेटियों की मां भी बन गई। शौहर हत्या के आरोप में जेल चला गया और बच्चों व परिवार को संभालने की जिम्मेदारी संभालने के लिए उसने पुलिस थाने में चल रही प्रधानमंत्री कौशल विकास योजना के तहत युवा योजना के तहत फ्रंट ऑफिस में सहायक की ट्रेनिंग लेकर आज लगभग 12 हजार रूपए की नौकरी का सफर तय किया है।
पुलिस आयुक्त अमूल्य पटनायक के मुताबिक मारिया दिल्ली के उन तीन हजार लड़के लड़कियों में से है जिन्हें दिल्ली पुलिस के आठ थानों में ट्रेनिंग मिली है और इसमें से 250 से ज्यादा लड़के लड़कियों को नौकरियां मिल चुकी हैं।
श्याम (बदला हुआ नाम) छोटी-मोटी चोरी करता था लेकिन कीर्ति नगर थाने में युवा के तहत कंप्यूटर हार्डवेयर का कोर्स सीखा और ट्रेनिंग के बाद एक प्राइवेट पैथलैब में असिस्टेंट इंजीनियर की नौकरी मिल गयी।
देश की राजधानी दिल्ली की झुग्गी बस्तियों में लाखों की जनसंख्या रहती है। लेकिन जागरूकता के अभाव में लड़कियों की कम उम्र में शादी, आपराधिक प्रवृत्ति का बढ़ जाना, ड्रग्स की लत लग जाना और गरीबी की अभाव में स्कूल छोड़ देना आम बात है। घर के हालात के चलते कुछ बालमजदूर बन जाते हैं तो झुग्गी-झोपड़ी कॉलोनियों में माहौल में नशे के आदी या अपराधी बन जाते हैं। ऐसे बच्चों को सामाजिक शिक्षा और व्यावसायिक ट्रेनिंग के जरिये समाज की मुख्यधारा में लाने के प्रयास में ही पुलिस ने युवा योजना शुरू की है।
इस योजना से सीखकर करीबन 250 प्रशिक्षित लड़के, लड़कियां बर्गर किंग, हीरो, फोर्टिस अस्पताल,वोडाफोन, कॉफी कैफे डे सहित कई होटलों में नौकरी कर रहे हैं।


