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सर्वोच्च न्यायालय में सब कुछ ठीक नहीं

सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीशों ने मौजूदा मुख्य न्यायाधीश पर उठाई उंगली, बोले

सर्वोच्च न्यायालय में सब कुछ ठीक नहीं
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नई दिल्ली। एक अभूतपूर्व घटनाक्रम में सर्वोच्च न्यायालय के चार न्यायाधीशों ने आज आरोप लगाया कि देश की सर्वोच्च अदालत की कार्यप्रणाली में प्रशासनिक व्यवस्थाओं का पालन नहीं किया जा रहा है और मुख्य न्यायाधीश द्वारा न्यायिक पीठों को सुनवाई के लिए मुकदमे मनमाने ढंग से आबंटित करने से न्यायपालिका की विश्वसनीयता पर दाग लग रहा है। सर्वोच्च न्यायालय में दूसरे वरिष्ठतम न्यायाधीश जस्ती चेलमेश्वर ने न्यायमूर्ति रंजन गोगोई, न्यायमूर्ति मदन बी लोकुर और न्यायमूर्ति कुरियन जोसेफ के साथ आज सुबह अपने तुगलक रोड स्थित आवास पर प्रेस कांफ्रेंस में ये आरोप लगाए।

उन्होंने मुख्य न्यायाधीश दीपक मिश्रा को इसके लिए सीधे जिम्मेदार ठहराया। इन न्यायाधीशों ने न्यायमूर्ति मिश्रा को लिखे एक पत्र में कहा कि मुख्य न्यायाधीश का पद समान स्तर के न्यायाधीशों में पहला होता है। उन्होंने पत्र में लिखा कि तय सिद्धांतों के अनुसार मुख्य न्यायाधीश को रोस्टर तय करने का विशेष अधिकार होता है और वह न्यायालय के न्यायाधीशों या पीठों को सुनवाई के लिए मुकदमे आबंटित करता है।

मुख्य न्यायाधीश को यह अधिकार अदालत के सुचारू रूप से कार्य संचालन एवं अनुशासन बनाए रखने के लिए है ना कि मुख्य न्यायाधीश के अपने सहयोगी न्यायाधीशों पर अधिकारपूर्ण सर्वोच्चता स्थापित करने के लिए। इस प्रकार से मुख्य न्यायाधीश का पद समान स्तर के न्यायाधीशों में पहला होता है, न उससे कम और न उससे अधिक।

ऐसे चलता रहा तो भुगतने होंगे गंभीर परिणाम

उन्होंने चुनींदा ढंग से मुकदमे सुनवाई के लिए चुनिंदा न्यायाधीशों को आबंटित किए जाने का आरोप लगाते हुए कहा कि रोस्टर तय करने के लिए परिभाषित प्रक्रिया एवं परंपराएं मुख्य न्यायाधीश को दिशा-निर्देशित करतीं हैं जिनमें किन प्रकार के मुकदमों की सुनवाई के लिेंं कितने न्यायाधीशों की पीठ बनाई जाए, उसकी परंपराएं भी शामिल हंै। न्यायाधीशों ने कहा कि इन परंपराओं एवं नियमों की अवहेलना से ना केवल अप्रिय स्थिति बनेगी बल्कि संस्था की विश्वसनीयता प्रभावित होगी और गंभीर परिणाम भुगतने होंगे।

सर्वोच्च पीठ की छवि धूमिल हुई है

मुख्य न्यायाधीश ने कई मुकदमों को बिना किसी तार्किक आधार 'अपनी पसंदÓ के हिसाब से पीठों को आबंटित किया है। ऐसी बातों को हर कीमत पर रोका जाना चाहिए। उन्होंने यह भी लिखा कि न्यायपालिका के सामने असहज स्थिति पैदा ना हो, इसलिए वे अभी इसका विवरण नहीं दे रहे हैं।


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